गत वर्ष जनवरी व फरवरी माह में खूब बर्फबारी हुई थी। ओएफसी केबल ग्रांफू के आसपास कट जाने से पूरी सर्दी इंटरनेट सेवा ठप रही। सुखद है कि इस साल इंटरनेट ठीक है। याद है कि पिछले वर्ष 24 फरवरी, 2011 को कुछ समाचार पत्रों में चंद्रा वैली के 14 गांवों के बर्फ में दबे होने की खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी। फंरट टॉप बाक्स खबर ने जिले व जिले से बाहर हलचल पैदा कर दी थी।
कोकसर से संपर्क पूरी तरह से कटा हुआ था। बाकि 13 गांवों से सुरक्षित होने की पुष्टि हो गई थी। कोकसर से संपर्क नहीं हो पा रहा था। बर्फ इतनी अधिक थी कि कोकसर जाना भी संभव नहीं था। स्थानीय लोगों के मुताबिक कोकसर भी सुरक्षित ही है। अन्यथा वहां से लोग पैदल भी पहुंच जाते हैं। 1979 में भी कुछ ऐसा ही हुआ। विकल्प कुछ नहीं था। सिर्फ उन समाचारों को कोसने के।
बिजली बोर्ड के एक्सईएन 4 मार्च को कुल्लू से लाहुल आए। अफवाह उड़ी कि पायलट को किसी ने लाल झंडा दिखाया। कोकसर के ऊपर से उड़ते हुए पायलट ने लाल कपड़ा हिलाते किसी को देखा। प्रशासन में फिर हलचल। 3 मार्च रात्रि दस बजे मेरा फोन बजा। लाइन पर विधायक डा. मार्कण्डा थे। उन्होंने मुझ से कहा कि क्या यह सच है कि पायलट को किसी ने लाल कपड़ा दिखाया है। मैने कहा कि मुझे नहीं मालूम। एक्सईएन साहब बता रहे थे।
उन्होंने कहा कि रैकी व रेस्क्यू टीम में आपको शामिल किया जा रहा है। कल पहली उड़ान से आप एसपी लाहुल व एसडीएम केलंग के साथ भुंतर पहुंचेंगे। भुंतर से छोटे चौपर सें कोकसर के लिए फिर उड़ान भरेंगे। आप व पुलिस वायरलैस का एक जवान रैपल करते हुए कोकसर उतरेंगे। वहां की पूरी स्थिति का जायजा ले कर वायरलैस से मैसेज कन्वे करेंगे। पर्वतारोहण के क्षेत्र में पूरी तरह से प्रशिक्षित होने के कारण मुझे इस रैकी व रेस्क्यू टीम में शामिल किया जा रहा है।
किसी भी अप्रिय स्थिति की खबर व प्रशासन से तालमेल के लिए भी विश्वासपात्र शख्स का चयन था। सत्तारूढ़ पार्टी का जिला महामंत्री निसंदेह ही प्रशासन व सरकार से हटकर नहीं सोचेगा। डा. मार्कण्डा के मुताबिक थोड़ी देर में एसडीएम केलंग आप से संपर्क करेगा। आप दोनों मिल कर तय कर लो क्या किया जाना है? उनका फोन जरूर आया, लेकिन कुछ इधर उधर की बातचीत के बाद शेष चर्चा अगले दिन मिलकर करने की बात की। हालांकि बहुत लोगों को मेरे इस टीम में शामिल होने पर भी ऐतराज था। जो यह नहीं जानते थे कि सरकार व प्रशासन क्या सोच रहा है?
अगले दिन सुबह एसपी ऑफिस में मिले। निर्णय हुआ हॉस्पिटल से डाक्टर भी जाएगा। दवाईयां एयर ड्रॉप की जाएंगी। छोटे के बजाए बड़े हेलीकाप्टर से रैकी करने की बात हुई। सतींगरी से उड़ान भर कर भुंतर के बजाए कोकसर से वापस आ जाएगा। ताकि एयर रैकी तो हो जाए। प्रशासन ने निर्णय लिया कि रस्सी के माध्यम से एक पत्र व दवाईयां ड्रॉप की जाएंगी। रैकी करने के बाद दूसरी उड़ान में तय होगा कि क्या किया जाए। कहने का तात्पर्य कोई आपात स्थिति होती है तो तीसरी उड़ान से राहत मिलेगी। पत्र लिखने का जिम्मा एक स्थानीय अधिकारी दिया गया।
पूरी कार्रवाई में मूक दर्शक बना रहा। पत्र कुछ इस तरह से था, प्रशासन आपकी मदद के लिए आ रहा है। एक अस्थाई हेलीपैड तैयार रखें। अगले उड़ान में रस्सी लटका दी जाएगी और जो भी समस्या हो पत्र में लिख कर उस पर बांध दें आदि-आदि। पत्र व दवाई के साथ कुछ और भी ड्रॉप किया जाना चाहिए। ऐसे में एक अधिकारी का सुझाव था कि कुछ मैगी व बिस्किट के पैकेट ड्रॉप करना चाहिए। मुझ से रहा न गया, मैंने कह दिया कि कोकसर एक ऐसा स्टेशन है जहां मैगी व बिस्कुट की कोई कमी नहीं।
गर्मियों में कोकसर कुल्लू जाने व लाहुल आने वालों के लिए महत्वपूर्ण स्टेशन है। वहां मैगी व बिस्किट्र!!!! अधिकारी ने कह दिया है तो हुक्म की तामिल तो होनी थी। रविवार का दिन था सो केलंग में पूरे बाजार बंद थे। ऐसे में मैं एक स्थानीय दुकानदार से बिस्किट व मैगी के पैकेट खरीद लाया। बिल आज तक मुझे नहीं मिला। एक रस्सी पर्वतारोहण उपकेंद्र से मंगवाया गया। सतींगरी हेलीपेड पर दवाई अन्य मैगी, बिस्किट की पैकिंग की गई ताकि एयर ड्रॉपिंग के दौरान न फटे।
पूरा सिस्टम अटपटा सा लग रहा था। मेरा सुझाव था कि जो पत्र लिखे गए है, उसके बजाए यह लिखा जाए कि *कोई बीमार हो तो आग जला कर धुंआ निकालें*,* किसी की मृत्यु हुई है और उसे एयरलिफ्ट करना है तो लाल कपड़ा दिखाएं* तथा *सब कुछ सामान्य हो तो सफेद कपड़ा लहराएं*। ग्रामीणों की प्रतिक्रिया के मुताबिक राहत कार्यों में सुविधा होगी। हेलीपेड पर ही इस प्रकार का पत्र लिखना शुरू किया गया। थोड़ी देर में एक अधिकारी मुझे बुला ले गया।
अधिकारी की तर्क या दलील थी कि लाल कपड़ा या धुंआ ही दिखा तो? अगली उड़ान नहीं हुई तो यह तो और अधिक बड़ा ईशू बन जाएगा। ऐसे में पहले जो पत्र लिखा गया था उसे ही ड्रॉप कर दो। जिम्मेवारी तो हमारी यानि ब्यूरोक्रेसी की है। अधिकारी के तर्क पर मैं हतप्रभ था। समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्या कहा जाए। मेरी सहमति उनके मुताबिक थी। अब मुझे हेलीकाप्टर से रैपल कर उतरना है, लेकिन रस्सी को छोड़ कर सीट हारनैस, कैराविनर, ग्लबज कुछ भी नहीं है। अब कोई पागल ही होगा जो रैपल करेगा।
हेलीकाप्टर कोकसर व डिम्फूग गांव के ऊपर चक्कर काटता रहा। पुल के दूसरी तरफ ढ़ाबे, सरकारी भवन, ग्रेफ परिसर, रेस्ट हाउस, पुलिस चौकी इत्यादि बर्फ के ढ़ेर के बीच दिखे। बहुत नीचे उड़ते हेलीकाप्टर को देखकर भी ग्रामीण सामान्य थे। वो हेलीकाप्टर को चक्कर काटते देखते रहे। दोनों गांव में हेलीकाप्टर से एयर ड्रॉपिंग कर दी गई। हम एमआई 17 से एयर रैकी कर रहे थे। जो कतई रैकी नहीं था। जमीन से 500 मीटर ऊपर उड़ते हुए रैकी करना....अद्भुत ही कहूंगा। छोटा चौपर होता तो शायद हम लैंड भी कर जाते। तीन चार चक्कर के बाद वापस सतींगरी लौट आए। दूसरी उड़ान फिर नहीं हुई। अधिकारी जुट गए सरकार को रिपोर्ट करने में। खानापूर्ति थी, इस उड़ान से साबित हो गया कि सरकार हरकत में है।
विधायक महोदय का फोन आया, मुझ से पूरी रिपोर्ट लेते रहे। मैंने उन्हें पूरी बात बता दी। क्या पत्र उन्होंने लिखा है और क्या उसके परिणाम होंगे? उन्होंने एसपी से इस बारे पूछा तो उन्होंने विधायक को यह बता दिया कि पत्र जैसा मैंने बताया वैसा ही लिखा गया है। साथ ही वह सिस्सू पुलिस चौकी से पुलिस जवानों की टीम भेज रहे हैं। बात आई गई हो गई। स्थिति सामान्य होने की बात समाचारों आ गई। दो दिन बाद एसपी से कोकसर भेजे जाने वाले टीम के बारे में पूछा तो बोले अजय जी आप को मालूम ही है कि कोकसर का रास्ता कितना रिस्की है। ऐसे में जवानों को भेजे जाने का जोखिम कौन लेगा?
अब क्या कहता? 15 मार्च के बाद रेस्क्यू पोस्ट स्थापित हुआ। कोकसर में सामान्य स्थिति की खबर भी आ गई। पायलट को दिखाया गया लाल झंडा असल में बौद्ध धर्म के लोग घर के छत पर विभिन्न रंग के झंडे लगाते हैं वो था। वो दिखाया नहीं गया बल्कि छत पर ही लगा हुआ था। स्थानीय लोग भडक़े हुए थे। कारस्तानी प्रशासन की, नराजगी विधायक से, बात भी सही है। लोगों ने पत्र के मुताबिक बर्फ को बीट करते हुए हेलीपेड भी बनाया था। मैगी और बिस्किट ने उनका पारा और अधिक चढ़ा दिया। मैं आज तक नहीं समझ पाया कि यह एयर रैकी था या जॉय राइड? लेकिन याद रहेगा, प्रशासन के साथ यह जॉय राइड रैकी। सिस्टम कैसे कार्य करता है यह भी दिख गया।
कोकसर से संपर्क पूरी तरह से कटा हुआ था। बाकि 13 गांवों से सुरक्षित होने की पुष्टि हो गई थी। कोकसर से संपर्क नहीं हो पा रहा था। बर्फ इतनी अधिक थी कि कोकसर जाना भी संभव नहीं था। स्थानीय लोगों के मुताबिक कोकसर भी सुरक्षित ही है। अन्यथा वहां से लोग पैदल भी पहुंच जाते हैं। 1979 में भी कुछ ऐसा ही हुआ। विकल्प कुछ नहीं था। सिर्फ उन समाचारों को कोसने के।
खबरें कुल्लू से हुई थी। लाहुल में खूब बर्फ। पत्रकार कुल्लू में । प्रशासन इन खबरों का खंडन करे भी तो करे कैसे? अफवाहों के बाजार गर्म। खैर बात टलती रही। समाचार पत्रों की प्रवृति होती है मुद्दे को तूल देना। प्रशासन पत्रकारों को हडक़ाने में लगा रहा । पत्रकार चुप इसलिए थे कि कोकसर से संपर्क का माध्यम कोई न था। खबर लिखी गई थी सुनी-सुनाई बातों पर। हां, जब उस पर शब्दों की कारीगरी हुई तो खबर धमाका बन गई।
बिजली बोर्ड के एक्सईएन 4 मार्च को कुल्लू से लाहुल आए। अफवाह उड़ी कि पायलट को किसी ने लाल झंडा दिखाया। कोकसर के ऊपर से उड़ते हुए पायलट ने लाल कपड़ा हिलाते किसी को देखा। प्रशासन में फिर हलचल। 3 मार्च रात्रि दस बजे मेरा फोन बजा। लाइन पर विधायक डा. मार्कण्डा थे। उन्होंने मुझ से कहा कि क्या यह सच है कि पायलट को किसी ने लाल कपड़ा दिखाया है। मैने कहा कि मुझे नहीं मालूम। एक्सईएन साहब बता रहे थे।
उन्होंने कहा कि रैकी व रेस्क्यू टीम में आपको शामिल किया जा रहा है। कल पहली उड़ान से आप एसपी लाहुल व एसडीएम केलंग के साथ भुंतर पहुंचेंगे। भुंतर से छोटे चौपर सें कोकसर के लिए फिर उड़ान भरेंगे। आप व पुलिस वायरलैस का एक जवान रैपल करते हुए कोकसर उतरेंगे। वहां की पूरी स्थिति का जायजा ले कर वायरलैस से मैसेज कन्वे करेंगे। पर्वतारोहण के क्षेत्र में पूरी तरह से प्रशिक्षित होने के कारण मुझे इस रैकी व रेस्क्यू टीम में शामिल किया जा रहा है।
किसी भी अप्रिय स्थिति की खबर व प्रशासन से तालमेल के लिए भी विश्वासपात्र शख्स का चयन था। सत्तारूढ़ पार्टी का जिला महामंत्री निसंदेह ही प्रशासन व सरकार से हटकर नहीं सोचेगा। डा. मार्कण्डा के मुताबिक थोड़ी देर में एसडीएम केलंग आप से संपर्क करेगा। आप दोनों मिल कर तय कर लो क्या किया जाना है? उनका फोन जरूर आया, लेकिन कुछ इधर उधर की बातचीत के बाद शेष चर्चा अगले दिन मिलकर करने की बात की। हालांकि बहुत लोगों को मेरे इस टीम में शामिल होने पर भी ऐतराज था। जो यह नहीं जानते थे कि सरकार व प्रशासन क्या सोच रहा है?
अगले दिन सुबह एसपी ऑफिस में मिले। निर्णय हुआ हॉस्पिटल से डाक्टर भी जाएगा। दवाईयां एयर ड्रॉप की जाएंगी। छोटे के बजाए बड़े हेलीकाप्टर से रैकी करने की बात हुई। सतींगरी से उड़ान भर कर भुंतर के बजाए कोकसर से वापस आ जाएगा। ताकि एयर रैकी तो हो जाए। प्रशासन ने निर्णय लिया कि रस्सी के माध्यम से एक पत्र व दवाईयां ड्रॉप की जाएंगी। रैकी करने के बाद दूसरी उड़ान में तय होगा कि क्या किया जाए। कहने का तात्पर्य कोई आपात स्थिति होती है तो तीसरी उड़ान से राहत मिलेगी। पत्र लिखने का जिम्मा एक स्थानीय अधिकारी दिया गया।
पूरी कार्रवाई में मूक दर्शक बना रहा। पत्र कुछ इस तरह से था, प्रशासन आपकी मदद के लिए आ रहा है। एक अस्थाई हेलीपैड तैयार रखें। अगले उड़ान में रस्सी लटका दी जाएगी और जो भी समस्या हो पत्र में लिख कर उस पर बांध दें आदि-आदि। पत्र व दवाई के साथ कुछ और भी ड्रॉप किया जाना चाहिए। ऐसे में एक अधिकारी का सुझाव था कि कुछ मैगी व बिस्किट के पैकेट ड्रॉप करना चाहिए। मुझ से रहा न गया, मैंने कह दिया कि कोकसर एक ऐसा स्टेशन है जहां मैगी व बिस्कुट की कोई कमी नहीं।
गर्मियों में कोकसर कुल्लू जाने व लाहुल आने वालों के लिए महत्वपूर्ण स्टेशन है। वहां मैगी व बिस्किट्र!!!! अधिकारी ने कह दिया है तो हुक्म की तामिल तो होनी थी। रविवार का दिन था सो केलंग में पूरे बाजार बंद थे। ऐसे में मैं एक स्थानीय दुकानदार से बिस्किट व मैगी के पैकेट खरीद लाया। बिल आज तक मुझे नहीं मिला। एक रस्सी पर्वतारोहण उपकेंद्र से मंगवाया गया। सतींगरी हेलीपेड पर दवाई अन्य मैगी, बिस्किट की पैकिंग की गई ताकि एयर ड्रॉपिंग के दौरान न फटे।
पूरा सिस्टम अटपटा सा लग रहा था। मेरा सुझाव था कि जो पत्र लिखे गए है, उसके बजाए यह लिखा जाए कि *कोई बीमार हो तो आग जला कर धुंआ निकालें*,* किसी की मृत्यु हुई है और उसे एयरलिफ्ट करना है तो लाल कपड़ा दिखाएं* तथा *सब कुछ सामान्य हो तो सफेद कपड़ा लहराएं*। ग्रामीणों की प्रतिक्रिया के मुताबिक राहत कार्यों में सुविधा होगी। हेलीपेड पर ही इस प्रकार का पत्र लिखना शुरू किया गया। थोड़ी देर में एक अधिकारी मुझे बुला ले गया।
अधिकारी की तर्क या दलील थी कि लाल कपड़ा या धुंआ ही दिखा तो? अगली उड़ान नहीं हुई तो यह तो और अधिक बड़ा ईशू बन जाएगा। ऐसे में पहले जो पत्र लिखा गया था उसे ही ड्रॉप कर दो। जिम्मेवारी तो हमारी यानि ब्यूरोक्रेसी की है। अधिकारी के तर्क पर मैं हतप्रभ था। समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्या कहा जाए। मेरी सहमति उनके मुताबिक थी। अब मुझे हेलीकाप्टर से रैपल कर उतरना है, लेकिन रस्सी को छोड़ कर सीट हारनैस, कैराविनर, ग्लबज कुछ भी नहीं है। अब कोई पागल ही होगा जो रैपल करेगा।
हेलीकाप्टर सतींगरी में लैंड हुई। रैकी करने वाले लोग सवार हुए। कैमरा सबके पास। पूरी चंद्रा वैली बर्फ से ढकी हुई। जिन गांवों का उल्लेख समाचारों में हुआ तमाम सुरक्षित। गुफा होटल के ऊपर से उड़ते हुए देखा रोहतांग टनल का पुल क्षतिग्रस्त हुआ है। परियोजना के हटस बर्फ में दबे हुए। कोकसर नाले का निर्माणाधीन पुल हल्का क्षतिग्र्रस्त। समाचार में पहले ही आ चुका था कि पुल पूरी तरह से ध्वस्त। यह बात ओर है कि बाद में पुल अधिक क्षतिग्रस्त हो गया था। पुल की दूसरी ओर से जबरदस्त अवलांच ने पुल को नुकसान पहुंचाया था।
विधायक महोदय का फोन आया, मुझ से पूरी रिपोर्ट लेते रहे। मैंने उन्हें पूरी बात बता दी। क्या पत्र उन्होंने लिखा है और क्या उसके परिणाम होंगे? उन्होंने एसपी से इस बारे पूछा तो उन्होंने विधायक को यह बता दिया कि पत्र जैसा मैंने बताया वैसा ही लिखा गया है। साथ ही वह सिस्सू पुलिस चौकी से पुलिस जवानों की टीम भेज रहे हैं। बात आई गई हो गई। स्थिति सामान्य होने की बात समाचारों आ गई। दो दिन बाद एसपी से कोकसर भेजे जाने वाले टीम के बारे में पूछा तो बोले अजय जी आप को मालूम ही है कि कोकसर का रास्ता कितना रिस्की है। ऐसे में जवानों को भेजे जाने का जोखिम कौन लेगा?
अब क्या कहता? 15 मार्च के बाद रेस्क्यू पोस्ट स्थापित हुआ। कोकसर में सामान्य स्थिति की खबर भी आ गई। पायलट को दिखाया गया लाल झंडा असल में बौद्ध धर्म के लोग घर के छत पर विभिन्न रंग के झंडे लगाते हैं वो था। वो दिखाया नहीं गया बल्कि छत पर ही लगा हुआ था। स्थानीय लोग भडक़े हुए थे। कारस्तानी प्रशासन की, नराजगी विधायक से, बात भी सही है। लोगों ने पत्र के मुताबिक बर्फ को बीट करते हुए हेलीपेड भी बनाया था। मैगी और बिस्किट ने उनका पारा और अधिक चढ़ा दिया। मैं आज तक नहीं समझ पाया कि यह एयर रैकी था या जॉय राइड? लेकिन याद रहेगा, प्रशासन के साथ यह जॉय राइड रैकी। सिस्टम कैसे कार्य करता है यह भी दिख गया।
5 comments:
एक सच्ची घटना से रुबरु कराने का आभार। वैसे इन दिनों तो वहाँ के हालात बहुत भयंकर हो जाते है।
कितना सटीक उदाहरण है. साधन प्रशासन व्यवस्था, शक्ति जिनके हाथ में है उन्हें किसी की परवाह नहीं है और जिन्हें परवाह है उन पर साधन नहीं हैं. पूरी घटना को सामने लाने के लिए आभार!
ajay lahuli kisi bhi rajnitik dal se sambadh ho koi fark nahi padta. Uski khoji patrakar hone ki sahaj vriti jhala hi jaati hai...aapda prabandhan ki sthiti me prashashan kis aproach se sochata hai...parten udherti hui report ke liye saadhuvad. bhitar ka patrakar zinda hai, dekh kar khushi hui.
Shashi Bhushan Purohit
वैसे जनता को पता था कि किसी गाँव मे कोई हताहत नही हुआ था, सब सुरक्षित थे. फोन पर सम्पर्क भी हो रहे थे. लेकिन प्रशासन को हेलिकॉप्टर का दुरुपयोग करना था . और यह ड्रामा करना ही था . तुम भी इस प्रक्रिया का हिस्सा बने. खैर , चलो इस नाटक से कुछ तो रिवील हुआ .
baithoge aag ke paas jakar, uthoge jaroor daaman jalakar. maana ke daaman bachate rahe tum, senk to fir bhi khate rahe tum.
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