Tuesday, December 7, 2010

पिंगरी-स्पीति में मुंडन संस्कार


स्पीति यात्रा के दौरान लाहुल-स्पीति के विधायक डा. रामलाल मार्कण्डा के साथ किब्बर व शेगो गांव में जाना हुआ। एक ही दिन दोनों गांवों में पिंगरी का आयोजन था। मुंडन की परंपरा को स्पीति में पिंगरी कहा जाता है। अक्टूबर माह से स्पीति में नवजातों के पिंगरी का दौर चलता है। पहली मर्तबा पिंगरी में जाने का अवसर मिला। 15 नवंबर को लाहुल के जाहलमा से चले। लंबी यात्रा करते हुए कुंजोम दर्रा पार कर लोसर सर्किट हाउस पहुंचे। पूरे स्पीति से विधायक को रिसीव करने कार्यकर्ताओं पहुंचे थे। पिंगरी अटैंड करने किब्बर की और चल पड़े। वाहनों का लंबा काफिला था। देर शाम किब्बर में निर्धारित घर पहुंचे तो विधायक का स्वागत हुआ। दूर दराज से रिश्तेदारों का आना जाना चला हुआ था। मेरे लिए स्पीति में ऐसे आयोजन का नया अनुभव था। भोज के उपरांत कुछ देर उसी घर में गीत-संगीत का कार्यक्रम चलता रहा। थोड़ी ही देर में परंपरागत अंदाज में बजंतरी मेहमानों को छंका हाल (सामुदायिक भवन) में आमंत्रित करने पहुंचे। वाद्ययंत्रों की गूंज के साथ छंका हाल पहुंचे। 






बहुत बड़े हाल में सैंकड़ों लोगों की मौजूदगी मेरे लिए हैरत का ही सबब बना। पारंपरिक परिधानों व आभूषणों में सजे लोग, मदिरा व व्यंजनों का दौर। शून्य से नीचे तापमान में लोग खूब गर्म कपड़ों के साथ डटे हुए थे। तीन दिन तक चलने वाले इस आयोजन की भव्यता कौतुहल जगा रही थी। स्पीति में ज्येष्ठ पुत्र, ज्येष्ठ पुत्री सहित छोटे बेटे जिसे लामा कहा जाता है के मुंडन का आयोजन किया जाता है। स्पीति में बड़े बेटे को पैतृक संपत्ति का अधिकार है व छोटे बेटों को भिक्षु बना दिया जाता है, यही कारण है कि भले ही वह भिक्षु बने या न बने उसे लामा ही कहा जाता है।





 पिंगरी के लिए बकायदा शुभ दिन का चयन होता है। तीन दिवसीय इस आयोजन के पहले दिन को छिंगफुद, दूसरे दिन पिंगरी मोला तथा तीसरे दिन को छंगलग कहा जाता है। छिंगफुद में ग्रामीण एकत्रित होते हैं व पिंगरी की तैयारियां की जाती है। पिंगरी मोला के दिन ग्राम देवता गुर के माध्यम से आवेशित होते हैं व नवजात व आयोजन के संदर्भ में भविष्यवाणी करते हैं। दूर-दूर से रिश्तेदार पहुंचते हैं। बौद्ध धर्म समर्पित क्षेत्र में लोकदेवता की मान्यता से चौंका जरूर, लेकिन प्रक्रिया नहीं देख पाया। 






नवजात के मंगलमय भविष्य के लिए बौद्ध परंपरा के अनुसार पूजा व प्रार्थना होती है। माइक लगा कर कर छंका हाल के शोरगुल के बीच एनाउंसमेंट होती है। लाहुल में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को सामाजिक आयोजनों में जुटते नहीं देखा था। साथ ही मुंडन की रस्म ज्येष्ठ पुत्र के लिए ही अदा की जाती है। बताया जाता है कि इस भव्य आयोजन का खर्च भी अधिक है व उसी अनुपात में नवजात को तोहफे नकद दिए जाते हैं। किब्बर के पिंगरी के बाद शेगो के लिए चल पड़े। शेगो पहुंच कर सर्वप्रथम स्वागत हुआ और भोज में मो मो दिए गए।  





वेजिटेरियन व नॉन वेजिटेरियन लोगों के हिसाब से मो मो बने थे। भोज के बाद आयोजन स्थल पर पहुंचे। यहां छंका हाल के बजाए विशाल पंडाल लगा हुआ था। पूछने पर पता चला कि छंका हाल गांव से कुछ हट कर बना है, इसलिए पंडाल लगा है। प्लास्टिक के शीट से पंडाल को चारो तरफ से ढक़ दिया गया था ताकि ठंडी हवा व कम तापमान से मेहमानों को परेशानी न हो। साथ ही हीटिंग के लिए मदिरा का प्रबंध तो था ही। 


परंपरागत पोशाकों में सजी महिलाओं ने मंगल नृत्य किया। परंपरा के अनुरूप मंगल गीत गाए गए। नवजात के रिश्तेदार नृत्य के नर्तकों को क्षमता के अनुसार रूपये देते हैं। सामूहिक गायन व नृत्य के दौर के बाद देर रात शेगो से काजा की और चल पड़े। 



हालांकि पिंगरी की पूरी रस्म नहीं देख पाया किंतु परंपरा व संस्कृति से जुड़ा भव्य आयोजन मेरे जहन में बस गया। संभव ही नहीं था कि पहली बार अधूरे आयोजन को देख कर पूरी प्रक्रिया को समझा जा सके। 





अफसोस इस बात का है कि मैं इस आयोजन को कैमरे में कैद नहीं कर सका। इस वर्ष 17 जू
न को हुए मेरी बेटी जिगमेद कुंसिल के मुंडन संस्कार के फोटो अपलोड कर पोस्ट में रंग भरने का प्रयास कर रहा हूँ.

Thursday, December 2, 2010

जिस्पा डेम-संघर्ष या राजनीति!

ब्लाग व इंटरनेट की दुनिया से लंबे ब्रेक के बाद नए पोस्ट के साथ दस्तक दे रहा हूं। मई माह में कुल्लू से लाहुल आ गया। पत्रकारिता को अलविदा कहते हुए रोजी रोटी के जुगाड़ में डट गया। प्रस्तावित जिस्पा डेम को लेकर विरोध के स्वर सुनाई दे रहे थे। जिस्पा में राष्ट्रीय महत्व की लगभग 200 मीटर ऊंचे वाटर स्टोरेज डेम व जलविद्युत परियोजना प्रस्तावित है। हालांकि इस विरोध से जुडऩे का आग्रह रिगजिन हायरपा करते रहे लेकिन मेरी विवशता यही थी कि जिस्पा व आसपास के क्षेत्रों से जमीनी तौर पर जुड़ाव मेरा न के बराबर ही रहा है। पांच गांवों के विस्थापन के मुद्दे पर कहीं न कहीं मेरी स्थिति ‘तू कौन मैं कौन खामखहा’ जैसी ही थी। इस बीच आरटीआई के तहत रिगजिन ने प्रस्तावित डेम के पीपीआर को हासिल कर लिया। रिपोर्ट को देखने के बाद पाया कि डेम के पानी को 5/5 डाया के लगभग 10 किलोमीटर लंबे 2 सुरंगों के माध्यम से लाया जा रहा है ताकि 300 मेगावाट की जलविद्युत परियोजना का निर्माण दो चरणों में हो सके। भूमिगत सुरंग मेरे पंचायत से निकल रहा है। यही एक कारण था कि मुझे अपने लोगों से जुडऩे का मौका मिल गया। विरोध की तैयारियां आरंभ हो गई। निर्णय लिया कि तीन पंचायतों के लोगों को मिला कर विशाल विरोध प्रदर्शन करेंगे। संघर्ष समिति के अध्यक्ष रवि ठाकुर के होने की बात की गई लेकिन समिति के अन्य पदाधिकारियों का कोई अता पता नहीं था। संघर्ष समिति गठित हुए बगैर ही हम डट गए। रिगजिन बतौर संयोजक व मैं सहसंयोजक के तौर पर संघर्ष व विरोध को गति देने में जुट गए। राजनीति से हट कर डेम व जलविद्युत परियोजना के दुष्प्रभावों व विस्थापन के मसले पर लोगों को जागरूक करने लगे। निर्णय हुआ कि एचपीसीएल से शुरूआती दौर में किसी भी स्तर पर बातचीत न हो। कंपनी के अधिकारी ग्रामीणों से एक टेबल पर बातचीत को तरसें। कंपनी के अधिकारियों का बहिष्कार व घेराव हो। प्रारंभिक सर्वे करने से रोका जाए। सूचना मिली कि एचपीपीसीएल के एमडी तरूण कपूर 7 जून को ग्रामीणों से बातचीत के लिए आ रहे हैं। रणनीति बनी कि उसी दिन केलंग में विशाल रैली निकालेंगे। प्रस्तावित डेम व परियोजना से प्रभावित होने वाले तीन पंचायतों के लोगों को सूचित किया गया। आखिर 7 जून, 2010 को संभवता लाहुल के इतिहास में पहली मर्तबा विशाल विरोध रैली निकली।


जमकर परियोजना के विरोध में गुब्बार निकला। महिलाओं की सक्रिय भागीदारी ने विरोध को धार दी। सतींगरी से जिला मुख्यालय केलंग (करीबन सात किलोमीटर) तक पदयात्रा करते हुए पहुंचे। खूब नारेबाजी हुई। डेम व जलविद्युत परियोजना के विरोध में महामहिम राज्यपाल व प्रदेश के मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित किया। सफल विरोध रैली ने एचपीपीएल को बैचेन कर दिया। संभवत: विरोध रैली की सूचना एमडी तरूण कपूर को मिल गई, नतीजतन वह लाहुल नहीं आए। रैली की सफलता से उत्साहित अगली रणनीति बनी। वाटर स्टोरेज डेम व जलविद्युत परियोजना के विरोध में लाहुल के पंचायती राज संस्थाओं को पत्र लिख कर समर्थन मांगा। विरोध प्रस्ताव का खाका तैयार कर भेजा गया। संघर्ष समिति के स्वयंभू अध्यक्ष रवि ठाकुर की राजनीतिक अपरिपक्वता ही थी कि विरोध व संघर्ष में कांग्रेस-भाजपा की प्रतिबद्धता को अलग न रख सके। अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं की उड़ान में हमारी मौजूदगी उन्हें खलती रही। संघर्ष में दरार डालते हुए सर्वप्रथम निर्णय के विपरीत वह कुल्लू में एचपीपीसीएल के अधिकारियों से मिले। फिर उन्हें जिस्पा में बुला लाए। एचपीपीसीएल के अधीन इस परियोजना के डीजीएम अमर लाल ठाकुर हैं जो लाहुल के जाहलमा गांव के हैं। संभवत: रवि ठाकुर के आमंत्रण पर बैठक में पहुंचे थे। इस बैठक की सूचना हमें नहीं मिली, तर्क दिया गया कि हमारी जमीन दारचा पंचायत में नहीं है। जब रिगजिन ने कहा कि उनकी जमीन जिस्पा में है तो उन्हें अनमने तरीके से कहा गया कि तो आप बैठक में आ सकते हैं जबकि उस समय वह केलंग में मेरे साथ थे। बैठक में वह नहीं पहुंच सके। सूचना मिली कि बैठक में अमर लाल ने कहा कि डेम तो हर हाल में बनना है विरोध के कोई मायने नहीं है। साथ ही उन्होंने ग्रामीणों को हास्यास्पद तरीके से गुमराह किया कि राज्यपाल या मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित करने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि आप विरोध करते हैं तो औने-पौने दाम पर सरकार आपकी जमीन का अधिग्रहण करेगी। विरोध नहीं करते हैं तो आपको प्रति बिस्वा कंपनी तीन लाख रूपये देगी। श्री अमर लाल ने कंपनी व सरकार के हित को साधते हुए एक तीर से दो निशाने साध दिए। ग्रामीणों को डर भी दिखा दिया व लालच देते हुए ‘फूट डालो शासन करो’ की नीति का सूत्रपात कर दिया। दोष उनका भी नहीं है। हम लोगों में से ही कुछ डेम के बनने को लेकर उत्साहित दिख रहे हैं। हालांकि इस बैठक में मु_ी भर लोगों की मौजूदगी रही। कहीं न कहीं इसका आकलन शुरू हो गया कि तीन लाख के हिसाब से किसे कितना मिल रहा है? सुनियोजित तरीके से यह बात भी ग्रामीणों में फैला दी गर्ई कि डेम तो किसी भी सूरत में नहीं रूक सकता, इसे तो बनना ही है। यह तथ्य है कि लाहुल में विरोध की संस्कृति का कोई इतिहास नहीं रहा है। परियोजनाओं को देखा नहीं है व उसके दुष्प्रभावों से अवगत होने का भी सवाल ही नहीं है। निर्माणाधीन रोहतांग सुरंग लाहुलियों की बहुप्रतीक्षित मांग है। उसके दुष्प्रभावों से किसी को कुछ लेना देना नहीं है व आम लाहुली यही चाहता है कि किसी भी सूरत में सुरंग का निर्माण हो। रोहतांग सुरंग की निर्माता कंपनी से नफे-नुकसान का सवाल स्थानीय स्तर पर कभी नहीं उठ सकता। अपने कवि मित्र अजेय से एक चर्चा के दौरान इस रोचक तथ्य का खुलासा हुआ कि लाहुल की स्थानीय बोलियों में दुश्मन के लिए कोई शब्द ही नहीं है। साफ हो गया कि विरोध या संघर्ष हमारी संस्कृति में ही नहीं है। इस बीच विभिन्न पंचायतों के समर्थन प्रस्ताव मिल रहे थे। निर्णय यही था कि तमाम पंचायतों के समर्थन प्रस्ताव के साथ जबरदस्त हस्ताक्षर अभियान चला कर केंद्र सरकार को प्रेषित करेंगे। 5 जुलाई को पूरे लाहुल में ग्राम सभा प्रस्तावित था। रिगजिन के साथ दारचा व कोलंग पंचायत में ग्राम सभा में जाने का निर्णय लिया। दारचा पंचायत की ग्राम सभा में ग्रामीणों का रोष रवि ठाकुर के प्रति झलक रहा था। रोष था कि निर्णय के विरूद्ध वह एचपीपीसीएल के लोगों से मिले व तमाम लोगों को सूचित किए बगैर एचपीपीसीएल के लोगों के साथ बातचीत हुई। ग्राम सभा में रवि ठाकुर की एंट्री के साथ ही रोष छुमंतर हो गया। हालांकि यहां मेरी मुखरता कुछ लोगों को जरूर अखरती रही। सुना जा रहा था कि जिस्पा में रवि ठाकुर के होटल में एचपीपीसीएल का कार्यालय खुलने जा रहा है। विचित्र स्थिति थी जिस्पा बांध संघर्ष समिति के अध्यक्ष एक और तो विरोध का झंडा बुलंद कर रहे थे तो दूसरी और कंपनी के अधिकारियों के साथ बराबर सीटिंग कर अपने होटल में टी पार्टी दे रहे हैं। विरोध में विरोधाभास। दोहरा स्टैंड। सवाल उठाया तो तर्क था कि वो उनका व्यवसाय है। जबाव दे दिया कि वह व्यवसाय जरूर करे लेकिन पूरे इलाके को बेच कर नहीं।

  
  रवि ठाकुर की परियोजनाओं के संदर्भ में सीमित जानकारी ही है कि ग्राम सभा में बोले सिंगुर में जो बांध बना है उसके विरोध में... उसी समय टोक दिया कि ठाकुर साहब सिंगुर में कोई बांध नहीं है, तो तुरंत जेपी के किन्नौर में बने परियोजना की चर्चा करते हुए कह उठे कि विरोध करेंगे तो पुलिस की लाठियां व अदालती केस झेलने पड़ते हैं। कहने भर की देर थी कि रहा नहीं गया, मुंह से निकल ही गया कि ठाकुर साहब, डर रहें हैं या डरा रहे हैं? संघर्ष समिति के स्वयंभू अध्यक्ष कुछ इस तरह से जिस्पा डेम के विरोध का झंडा बुलंद कर रहे हैं। स्पष्ट है कि वह मन बना चुके हैं कि डेम बनाना ही है। बात भी सही है उनके अपने मिट्टी से जुड़ाव को लेकर मुझे गंभीर संदेह है। जिस शख्स ने लाहुल की सर्दी व दुश्वारियों को नहीं झेला, मात्र एक आलीशान होटल उनके जुड़ाव को पुख्ता नहीं कर सकती। ग्राम सभा में मेरी मुखरता को पुराने विवाद के साथ जोड़ कर देखा गया। कुछ लोगों ने डेम के संदर्भ में दिए मेरे पुराने वक्तव्य की आड़ में मुझे घेरने की कोशिश भी की। कुछ देर बाद जिस्पा डेम की गर्मागर्मी नरेगा के तहत होने वाले पौध वितरण की गहमागमी में तब्दील हो गई। इतना जरूर पता चला कि एचपीपीसीएल ने दो पंचायतों से एनओसी के लिए पत्र लिखा है जिसपर यही निर्णय हुआ कि किसी भी प्रकार की एनओसी फिलहाल कंपनी को न दिया जाए। दारचा ग्राम सभा के बाद हम कोलंग पंचायत की ग्राम सभा में शामिल होने के निकल पड़े। जहां इस मसले पर पहले की चर्चा चल रही थी। इंतजार हमारे पहुंचने का हो रहा था। हमारे साथ-साथ रवि ठाकुर भी अपने वाहन में गेमूर पहुंच गए। यहां शायद रवि ठाकुर को एहसास हुआ कि वह जिस मुद्दे को सहजता से ले रहे है वह उतना सहज नहीं है। ग्राम सभा में इस मसले पर थोड़ी नोकझोंक भी हुई। अपने लोगों से जुडक़र अपनी विश्वनीयता को साबित करने के लिए मेरी जद्दोजहद जारी थी। बचपन में ही अपने इलाके में रहा, उसके बाद वर्षों तक मेरा जुड़ाव अपने इलाके से न के बराबर ही रहा। केलंग में बस जाने के बाद बहुत कम गांव या इलाके के सामाजिक आयोजनों में पहुंच पाता हूं। एकदम से एक संघर्ष के माध्यम से अचानक इलाके से जुड़ा। स्वाभाविक ही है कि मसले में कुछ लोग इस जुड़ाव का मकसद व मेरे एजेंडे की पड़ताल करते हुए संदेह भरी निगाहों से मेरी गतिविधियों पर सवाल तो खड़ा करेंगे ही। कुछ लोगों को मेरी सक्रियता खटक रही थी। किसी न किसी तरह से मुझे इस संघर्ष से बाहर करने की तैयारी होती रही। इस बीच सूचना मिली कि विस्थापित होने वाले पंचायत ने रवि ठाकुर की अगुवाई में जिस्पा बचाओ समिति का गठन कर लिया। संघर्ष समिति का दोफाड़ हो गया। रिगजिन को समिति ने महासचिव पद का ऑफर दिया जिसे रिगजिन ने शालीनता से ठुकरा दिया। इस स्ट्रोक के साथ संघर्ष से मैं बाहर हो गया। जिस उत्साह के साथ प्लानिंग कर रहे थे वह उत्साह ठंडा पड़ गया। संघर्ष का स्थान बचाओ ने ले लिया। आरोप यह भी लगे कि मैं संघर्ष में राजनीति कर रहा हूं। सक्रियता पर विराम देते हुए मैं भी चुप बैठ गया। जिस्पा बचाओ समिति का पंजीकरण किया गया। रिगजिन के ऑफर को ठुकराने के बाद मेरे गुरूजी अंगरूप ठाकुर को महासचिव का दायित्व दिया। विरोध का दौर इस बीच अगस्त माह में महामहिम दलाई लामा के जिस्पा दौरे के बजह से भी ठंडा पड़ा। पूरा दो पंचायत महामहिम के स्वागत व प्रवास की तैयारियों में जुटा रहा। मूक दर्शक बनना मेरी नियति थी। 


हां इतना जरूर है कि डीजीएम अमर लाल का फोन जरूर आया कि अजय जी हम आप से मिलना चाहते हैं आप केलंग में हमारे कार्यालय आएं। मैं ग्रामीणों के साथ ही कंपनी के लोगों से बात करना चाहता था ऐसे में उनके पास जाना मुझे मुनासिब नहीं लगा। यूं भी हम गुपचुप बातचीत का विरोध कर चुके थे, ऐसे में मेरा उनसे मिलना कई सवाल खड़े कर सकता था। इस बीच कुछ बुद्धिजीवियों ने संघर्ष को जारी रखने का आह्वान किया। अलग समिति के बैनर तले संघर्ष की रूपरेखा बन रही है। फिलहाल कोई ठोस निर्णय नहीं हो सका है। विस्थापित पंचायत की समिति बन चुकी है अब प्रभावित पंचायत को भी विरोध का बैनर तैयार करना है। कई दौर की बैठक हो चुकी है। इस बीच अक्टूबर माह में दशहरा के दौरान जिस्पा बचाओ समिति ने कुल्लू में दारचा पंचायत से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत अधिकारियों व कर्मचारियों के साथ बैठक की। कुल्लू में हुई इस बैठक में क्या हुआ उसकी अधिक जानकारी मुझे नहीं है, लेकिन समाचार पत्रों के माध्यम से पता चला कि बैठक के बाद महामहिम राज्यपाल को डेम के विरोध में ज्ञापन दिया। उसके बाद इस बैठक की जानकारी दारचा में दी गई, उसी बैठक में निर्णय हुआ कि डेम के विरोध में एकदिवसीय सांकेतिक अनशन केलंग में होगा। 3 नबंबर को 11 बजे जिस्पा बचाओ समिति ने 24 घंटे का अनशन आरंभ किया व 4 नबंवर को अनशन तोडऩे के बाद केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश को डेम के विरोध में उपायुक्त के माध्यम से ज्ञापन प्रेषित किया। रिगजिन इस अनशन में जिस्पा बचाओ समिति के सदस्यों के साथ बैठे। दारचा में हुई अंतिम बैठक के बाद वे आश्वस्त थे कि आंदोलन को एकजुटता के साथ जारी रखा जाएगा। अंगरूप गुरूजी से हुई बातचीत में उन्होंने मुझसे कहा जिस्पा बचाओ समिति छोटे भाई की भूमिका में होगी, असल लड़ाई तो जिस्पा बांध जन संघर्ष समिति के बैनर तले ही लड़ा जाएगा। दलील थी कि परियोजना प्रबंधकों के साथ जब नेगोसियशन की स्थिति आएगी तो विस्थापितों की अलग समिति की जरूरत पड़ेगी। अत: जिस्पा बचाओ समिति का गठन हुआ है।



मेरे सवाल अब भी जस के तस थे। उपसमिति पंजीकृत है और मुख्य समिति का अभी कोई अता पता नहीं है। जिस्पा बचाओ समिति का अध्यक्ष रवि ठाकुर है तो क्या जिस्पा बांध संघर्ष समिति के अध्यक्ष भी रवि ठाकुर ही होंगे? यदि उपसमिति का गठन करना था तो जिस्पा बांध संघर्ष समिति को विश्वास में क्यों नहीं लिया गया? एक शोर गूंज रहा था कि जो शख्स अपने इलाके के संघर्ष को ही तोड़ गया तो उसकी विश्वनीयता क्या होगी? क्या छवि के डेमेज को कंट्रोल करने के लिए समिति व उपसमिति का ड्रामा चल रहा है? हास्यास्पद ही कहूंगा संघर्ष शुरू हुआ नहीं और समझौते की तैयारियां हो गई। बड़े बेआबरू हो कर संघर्ष से बेदखल हुए, अब क्या जबरन मुझे उस सूडो संघर्ष का हिस्सा बनना चाहिए? पूरा सीजन कंपनी के लोग बेधडक़ सर्वे करतेे हुए हमारी छाती पर दनदनाते रहे अब उनके जाने के बाद अनशन अटपटा ही था। यही कुछ सवाल थे जिसके चलते उस अनशन से दूर ही रहा। अजेय भाई संघर्ष के आरंभिक दौर से ही मुझे उत्साहित करते रहे हैं। निरंतर उनसे चर्चा होती रही। वह हमेशा कहते रहे प्रतिरोध के लिए लडऩे की नीयत चाहिए। फिलहाल वो प्रतिबद्धता उन्हें नहीं दिख रही है। उन्होंने अफसोस जताते हुए कहा कि कंपनी की उपलब्धि है कि उन्होंने एक मैच्योर होते हुए जनसंघर्ष में बड़ी आसानी से फांक पैदा कर दी। लेकिन इस फांक के विरूद्ध भी तो संघर्ष किया जा सकता है।