Tuesday, December 7, 2010

पिंगरी-स्पीति में मुंडन संस्कार


स्पीति यात्रा के दौरान लाहुल-स्पीति के विधायक डा. रामलाल मार्कण्डा के साथ किब्बर व शेगो गांव में जाना हुआ। एक ही दिन दोनों गांवों में पिंगरी का आयोजन था। मुंडन की परंपरा को स्पीति में पिंगरी कहा जाता है। अक्टूबर माह से स्पीति में नवजातों के पिंगरी का दौर चलता है। पहली मर्तबा पिंगरी में जाने का अवसर मिला। 15 नवंबर को लाहुल के जाहलमा से चले। लंबी यात्रा करते हुए कुंजोम दर्रा पार कर लोसर सर्किट हाउस पहुंचे। पूरे स्पीति से विधायक को रिसीव करने कार्यकर्ताओं पहुंचे थे। पिंगरी अटैंड करने किब्बर की और चल पड़े। वाहनों का लंबा काफिला था। देर शाम किब्बर में निर्धारित घर पहुंचे तो विधायक का स्वागत हुआ। दूर दराज से रिश्तेदारों का आना जाना चला हुआ था। मेरे लिए स्पीति में ऐसे आयोजन का नया अनुभव था। भोज के उपरांत कुछ देर उसी घर में गीत-संगीत का कार्यक्रम चलता रहा। थोड़ी ही देर में परंपरागत अंदाज में बजंतरी मेहमानों को छंका हाल (सामुदायिक भवन) में आमंत्रित करने पहुंचे। वाद्ययंत्रों की गूंज के साथ छंका हाल पहुंचे। 






बहुत बड़े हाल में सैंकड़ों लोगों की मौजूदगी मेरे लिए हैरत का ही सबब बना। पारंपरिक परिधानों व आभूषणों में सजे लोग, मदिरा व व्यंजनों का दौर। शून्य से नीचे तापमान में लोग खूब गर्म कपड़ों के साथ डटे हुए थे। तीन दिन तक चलने वाले इस आयोजन की भव्यता कौतुहल जगा रही थी। स्पीति में ज्येष्ठ पुत्र, ज्येष्ठ पुत्री सहित छोटे बेटे जिसे लामा कहा जाता है के मुंडन का आयोजन किया जाता है। स्पीति में बड़े बेटे को पैतृक संपत्ति का अधिकार है व छोटे बेटों को भिक्षु बना दिया जाता है, यही कारण है कि भले ही वह भिक्षु बने या न बने उसे लामा ही कहा जाता है।





 पिंगरी के लिए बकायदा शुभ दिन का चयन होता है। तीन दिवसीय इस आयोजन के पहले दिन को छिंगफुद, दूसरे दिन पिंगरी मोला तथा तीसरे दिन को छंगलग कहा जाता है। छिंगफुद में ग्रामीण एकत्रित होते हैं व पिंगरी की तैयारियां की जाती है। पिंगरी मोला के दिन ग्राम देवता गुर के माध्यम से आवेशित होते हैं व नवजात व आयोजन के संदर्भ में भविष्यवाणी करते हैं। दूर-दूर से रिश्तेदार पहुंचते हैं। बौद्ध धर्म समर्पित क्षेत्र में लोकदेवता की मान्यता से चौंका जरूर, लेकिन प्रक्रिया नहीं देख पाया। 






नवजात के मंगलमय भविष्य के लिए बौद्ध परंपरा के अनुसार पूजा व प्रार्थना होती है। माइक लगा कर कर छंका हाल के शोरगुल के बीच एनाउंसमेंट होती है। लाहुल में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को सामाजिक आयोजनों में जुटते नहीं देखा था। साथ ही मुंडन की रस्म ज्येष्ठ पुत्र के लिए ही अदा की जाती है। बताया जाता है कि इस भव्य आयोजन का खर्च भी अधिक है व उसी अनुपात में नवजात को तोहफे नकद दिए जाते हैं। किब्बर के पिंगरी के बाद शेगो के लिए चल पड़े। शेगो पहुंच कर सर्वप्रथम स्वागत हुआ और भोज में मो मो दिए गए।  





वेजिटेरियन व नॉन वेजिटेरियन लोगों के हिसाब से मो मो बने थे। भोज के बाद आयोजन स्थल पर पहुंचे। यहां छंका हाल के बजाए विशाल पंडाल लगा हुआ था। पूछने पर पता चला कि छंका हाल गांव से कुछ हट कर बना है, इसलिए पंडाल लगा है। प्लास्टिक के शीट से पंडाल को चारो तरफ से ढक़ दिया गया था ताकि ठंडी हवा व कम तापमान से मेहमानों को परेशानी न हो। साथ ही हीटिंग के लिए मदिरा का प्रबंध तो था ही। 


परंपरागत पोशाकों में सजी महिलाओं ने मंगल नृत्य किया। परंपरा के अनुरूप मंगल गीत गाए गए। नवजात के रिश्तेदार नृत्य के नर्तकों को क्षमता के अनुसार रूपये देते हैं। सामूहिक गायन व नृत्य के दौर के बाद देर रात शेगो से काजा की और चल पड़े। 



हालांकि पिंगरी की पूरी रस्म नहीं देख पाया किंतु परंपरा व संस्कृति से जुड़ा भव्य आयोजन मेरे जहन में बस गया। संभव ही नहीं था कि पहली बार अधूरे आयोजन को देख कर पूरी प्रक्रिया को समझा जा सके। 





अफसोस इस बात का है कि मैं इस आयोजन को कैमरे में कैद नहीं कर सका। इस वर्ष 17 जू
न को हुए मेरी बेटी जिगमेद कुंसिल के मुंडन संस्कार के फोटो अपलोड कर पोस्ट में रंग भरने का प्रयास कर रहा हूँ.

14 comments:

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

स्पीती के बारे में जान कर अच्छा लगा ....१७ जून को हुयी आपकी बेटी के लिए मेरी मंगलकामनाएं .....

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बढिया जानकारी अजय लाहुली जी
आज बहुत दिनों के बाद इस ब्लाग पर आया।
आपकी बेटी को मेरा आशीर्वाद

sanjay vyas said...

बड़ा जटिल आयोजन रहता है पिन्गरी का.बढ़िया विवरण.
किसी भी धर्म में लोक परम्पराओं का होना उसका समन्वयवादी होना दर्शाता है जैसे कि लामा बौद्ध मत में लोक देवताओं की उपस्थिति.
जिग्मेद बहुत क्यूट लग रही है उसे मेरी ओर से काला टीका लगाइए.

लाहुली said...

कौशलेन्द्र्जी,ललितजी,संजयजी आभार.
# संजय जी हिमालयी बौद्ध मत मै लोक देवताओ की मौजूदगी को देखता हू किंतु प्रत्यक्ष मै इसे नकारने की प्रवृति का ही परिणाम है कि मै चौंक उठा था.

Anonymous said...

भाई साहब लाहुल की संस्‍करिित से रू ब रू कराने के लिए धन्‍यवाद।

बहुत बढिया, लाहुल स्‍पीति के बारे में कुछ और जानने को मिला।

आपको जिगमेद कुंसिल के मुंडन संस्‍कार की बधाई, लेकिन आपने हमें लाहुल बुलाने और घुमाने का वादा किया था, जिसे आपने अभी तक नहीं निभाया है।

Vinod Dogra said...

बहुत बधाई आपको...खुशनसीब हो जो इतना कुछ नया देख पाते हो.

अजेय said...

jaanakar achchhaa lagaa ki beTee aur laamaa ka muNDan bhee celebrate kiyaa jaataa hai....

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

कितना विविध और कितना सुन्दर है अपना देश!
यात्रावृत्त बहुत सुन्दर है।
जिगमेद कुंसिल के मुंडन संस्‍कार की बधाई।
आप का आभार कि मेरे लिए अनजाने इस क्षेत्र से जान पहचान करा रहे हैं।

केवल राम said...

लाहुली संस्कृति और रीति रिवाजों से वाकिफ हूँ ..पर इस रूप में देख कर अच्छा लगा भाई ..लोक संस्कृति की महक विश्व के कोने कोने तक जानी चाहिए ...आपका प्रयास सराहनीय है ..आगे बढ़ें ...शुक्रिया

Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said...

पढकर बहुत अच्छा लगा। आपकी बिटिया बहुत प्यारी है। धन्यवाद!

आर. अनुराधा said...

अजयजी, बहुतसमय बाद इधर आना हुआ।जिगमेद के चित्र लगाकर आपने समा रंगीन कर दिया। वह किसकी गोद में है? एकजगह बीच में माताजी को भी देख पाई। उम्मीद है,सब मजे में हैं। आप धर्मशाला में हैं अभी या कहीं और निकल लिए? शुभकामनाएं।

SANDEEP PANWAR said...

आगे लिखो

Anonymous said...

Zigmed ko bahut bahut sneh...Shashi

Anonymous said...

bhut achey rang bhar liye hai aapne...nice post n lots of good wishes for kunsil....