Friday, February 10, 2012

एयर रैकी या जॉय राइड.....

त वर्ष जनवरी व फरवरी माह में खूब बर्फबारी हुई थी। ओएफसी केबल ग्रांफू के आसपास कट जाने से पूरी सर्दी इंटरनेट सेवा ठप रही। सुखद है कि इस साल इंटरनेट ठीक है। याद है कि पिछले वर्ष 24 फरवरी, 2011 को कुछ समाचार पत्रों में चंद्रा वैली के 14 गांवों के बर्फ में दबे होने की खबर प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी। फंरट टॉप बाक्स खबर ने जिले व जिले से बाहर हलचल पैदा कर दी थी।



कोकसर से संपर्क पूरी तरह से कटा हुआ था। बाकि 13 गांवों से सुरक्षित होने की  पुष्टि हो गई थी। कोकसर से संपर्क नहीं हो पा रहा था। बर्फ इतनी अधिक थी कि कोकसर जाना भी संभव नहीं था। स्थानीय लोगों के मुताबिक कोकसर भी सुरक्षित ही है। अन्यथा वहां से लोग पैदल भी पहुंच जाते हैं। 1979 में भी कुछ ऐसा ही हुआ। विकल्प कुछ नहीं था। सिर्फ उन समाचारों को कोसने के।



खबरें कुल्लू से हुई थी। लाहुल में खूब बर्फ। पत्रकार कुल्लू में । प्रशासन इन खबरों का खंडन करे भी तो करे कैसे? अफवाहों के बाजार गर्म। खैर बात टलती रही। समाचार पत्रों की प्रवृति होती है मुद्दे को तूल देना। प्रशासन पत्रकारों को हडक़ाने में लगा रहा । पत्रकार चुप इसलिए थे कि कोकसर से संपर्क का माध्यम कोई न था। खबर लिखी गई थी सुनी-सुनाई बातों पर। हां, जब उस पर शब्दों की कारीगरी हुई तो खबर धमाका बन गई।



 बिजली बोर्ड के एक्सईएन 4 मार्च को कुल्लू से लाहुल आए। अफवाह उड़ी कि पायलट को किसी ने लाल झंडा दिखाया। कोकसर के ऊपर से उड़ते हुए पायलट ने लाल कपड़ा हिलाते किसी को देखा। प्रशासन में फिर हलचल। 3 मार्च रात्रि दस बजे मेरा फोन बजा। लाइन पर विधायक डा. मार्कण्डा थे। उन्होंने मुझ से कहा कि क्या यह सच है कि पायलट को किसी ने लाल कपड़ा दिखाया है। मैने कहा कि मुझे नहीं मालूम। एक्सईएन साहब बता रहे थे।



उन्होंने कहा कि रैकी व रेस्क्यू टीम में आपको शामिल किया जा रहा है। कल पहली उड़ान से आप एसपी लाहुल व एसडीएम केलंग के साथ भुंतर पहुंचेंगे। भुंतर से छोटे चौपर सें कोकसर के लिए फिर उड़ान भरेंगे। आप व पुलिस वायरलैस का एक जवान रैपल करते हुए कोकसर उतरेंगे। वहां की पूरी स्थिति का जायजा ले कर वायरलैस से मैसेज कन्वे करेंगे। पर्वतारोहण के क्षेत्र में पूरी तरह से प्रशिक्षित होने के कारण मुझे इस रैकी व रेस्क्यू टीम में शामिल किया जा रहा है।



किसी भी अप्रिय स्थिति की खबर व प्रशासन से तालमेल के लिए भी विश्वासपात्र शख्स का चयन था। सत्तारूढ़ पार्टी का जिला महामंत्री निसंदेह ही प्रशासन व सरकार से हटकर नहीं सोचेगा। डा. मार्कण्डा के मुताबिक थोड़ी देर में एसडीएम केलंग आप से संपर्क करेगा। आप दोनों मिल कर तय कर लो क्या किया जाना है? उनका फोन जरूर आया, लेकिन कुछ इधर उधर की बातचीत के बाद शेष चर्चा अगले दिन मिलकर करने की बात की। हालांकि बहुत लोगों को मेरे इस टीम में शामिल होने पर भी ऐतराज था। जो यह नहीं जानते थे कि सरकार व प्रशासन क्या सोच रहा  है?



अगले दिन सुबह एसपी ऑफिस में मिले। निर्णय हुआ हॉस्पिटल से डाक्टर भी जाएगा। दवाईयां एयर ड्रॉप की जाएंगी। छोटे के बजाए बड़े हेलीकाप्टर से रैकी करने की बात हुई। सतींगरी से उड़ान भर कर भुंतर के बजाए कोकसर से वापस आ जाएगा। ताकि एयर रैकी तो हो जाए। प्रशासन ने निर्णय लिया कि रस्सी के माध्यम से एक पत्र व दवाईयां ड्रॉप की जाएंगी। रैकी करने के बाद दूसरी उड़ान में तय होगा कि क्या किया जाए। कहने का तात्पर्य कोई आपात स्थिति होती है तो तीसरी उड़ान से राहत मिलेगी। पत्र लिखने का जिम्मा एक स्थानीय अधिकारी दिया गया।



पूरी कार्रवाई में मूक दर्शक बना रहा। पत्र कुछ इस तरह से था, प्रशासन आपकी मदद के लिए आ रहा है। एक अस्थाई हेलीपैड तैयार रखें। अगले उड़ान में रस्सी लटका दी जाएगी और जो भी समस्या हो पत्र में लिख कर उस पर बांध दें आदि-आदि। पत्र व दवाई के साथ कुछ और भी ड्रॉप किया जाना चाहिए। ऐसे में एक अधिकारी का सुझाव था कि कुछ मैगी व बिस्किट के पैकेट ड्रॉप करना चाहिए। मुझ से रहा न गया, मैंने कह दिया कि कोकसर एक ऐसा स्टेशन है जहां मैगी व बिस्कुट की कोई कमी नहीं।



गर्मियों में कोकसर कुल्लू जाने व लाहुल आने वालों के लिए महत्वपूर्ण स्टेशन है। वहां मैगी व बिस्किट्र!!!! अधिकारी ने कह दिया है तो हुक्म की तामिल तो होनी थी। रविवार का दिन था सो केलंग में पूरे बाजार बंद थे। ऐसे में मैं एक स्थानीय दुकानदार से बिस्किट व मैगी के पैकेट खरीद लाया। बिल आज तक मुझे नहीं मिला। एक रस्सी पर्वतारोहण उपकेंद्र से मंगवाया गया। सतींगरी हेलीपेड पर दवाई अन्य मैगी, बिस्किट की पैकिंग की गई ताकि एयर ड्रॉपिंग के दौरान न फटे।



पूरा सिस्टम अटपटा सा लग रहा था। मेरा सुझाव था कि जो पत्र लिखे गए है, उसके बजाए यह लिखा जाए कि *कोई बीमार हो तो आग जला कर धुंआ  निकालें*,* किसी की मृत्यु हुई है और उसे एयरलिफ्ट करना है तो लाल कपड़ा दिखाएं* तथा *सब कुछ सामान्य हो तो सफेद कपड़ा लहराएं*। ग्रामीणों की प्रतिक्रिया के मुताबिक राहत कार्यों में सुविधा होगी। हेलीपेड पर ही इस प्रकार का पत्र लिखना शुरू किया गया। थोड़ी देर में एक अधिकारी मुझे बुला ले गया।



अधिकारी की तर्क या दलील थी कि लाल कपड़ा या धुंआ ही दिखा तो? अगली उड़ान नहीं हुई तो यह तो और अधिक बड़ा ईशू बन जाएगा। ऐसे में पहले जो पत्र लिखा गया था उसे ही ड्रॉप कर दो। जिम्मेवारी तो हमारी यानि ब्यूरोक्रेसी की है। अधिकारी के तर्क पर मैं हतप्रभ था। समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्या कहा जाए। मेरी सहमति उनके मुताबिक थी। अब मुझे हेलीकाप्टर से रैपल कर उतरना है, लेकिन रस्सी को छोड़ कर सीट हारनैस, कैराविनर, ग्लबज कुछ भी नहीं है। अब कोई पागल ही होगा जो रैपल करेगा।



हेलीकाप्टर सतींगरी में लैंड हुई। रैकी करने वाले लोग सवार हुए। कैमरा सबके पास। पूरी चंद्रा वैली बर्फ से ढकी हुई। जिन गांवों का उल्लेख समाचारों में हुआ तमाम सुरक्षित। गुफा होटल के ऊपर से उड़ते हुए देखा रोहतांग टनल का पुल क्षतिग्रस्त हुआ है। परियोजना के हटस बर्फ में दबे हुए। कोकसर नाले का निर्माणाधीन पुल हल्का क्षतिग्र्रस्त। समाचार में पहले ही आ चुका था कि पुल पूरी तरह से ध्वस्त। यह बात ओर है कि बाद में पुल अधिक क्षतिग्रस्त हो गया था। पुल की दूसरी ओर से जबरदस्त अवलांच ने  पुल को नुकसान पहुंचाया था।


हेलीकाप्टर कोकसर व डिम्फूग गांव के ऊपर चक्कर काटता रहा। पुल के दूसरी तरफ ढ़ाबे, सरकारी भवन, ग्रेफ परिसर, रेस्ट हाउस, पुलिस चौकी इत्यादि बर्फ के ढ़ेर के बीच दिखे। बहुत नीचे उड़ते हेलीकाप्टर को देखकर भी ग्रामीण सामान्य थे। वो हेलीकाप्टर को चक्कर काटते देखते रहे। दोनों गांव में हेलीकाप्टर से एयर ड्रॉपिंग कर दी गई। हम  एमआई 17 से एयर रैकी कर रहे थे। जो कतई रैकी नहीं था। जमीन से 500 मीटर ऊपर उड़ते हुए रैकी करना....अद्भुत ही कहूंगा। छोटा चौपर होता तो शायद हम लैंड भी कर जाते। तीन चार चक्कर के बाद वापस सतींगरी लौट आए। दूसरी उड़ान फिर नहीं हुई। अधिकारी जुट गए सरकार को रिपोर्ट करने में। खानापूर्ति थी, इस उड़ान से साबित हो गया कि सरकार हरकत में है।




विधायक महोदय का फोन आया, मुझ से पूरी रिपोर्ट लेते रहे। मैंने उन्हें पूरी बात बता दी। क्या पत्र उन्होंने लिखा है और क्या उसके परिणाम होंगे? उन्होंने एसपी से इस बारे पूछा तो उन्होंने विधायक को यह बता दिया कि पत्र जैसा मैंने बताया वैसा ही लिखा गया है। साथ ही वह सिस्सू पुलिस चौकी से पुलिस जवानों की टीम भेज रहे हैं। बात आई गई हो गई। स्थिति सामान्य होने की बात समाचारों आ गई। दो दिन बाद एसपी से कोकसर भेजे जाने वाले टीम के बारे में पूछा तो बोले अजय जी आप को मालूम ही है कि कोकसर का रास्ता कितना रिस्की है। ऐसे में जवानों को भेजे जाने का जोखिम कौन लेगा?



अब क्या कहता?  15 मार्च के बाद  रेस्क्यू पोस्ट स्थापित हुआ। कोकसर में सामान्य स्थिति की खबर भी आ गई। पायलट को दिखाया गया लाल झंडा असल में बौद्ध धर्म के लोग घर के छत पर विभिन्न रंग के झंडे लगाते हैं वो था। वो दिखाया नहीं गया बल्कि छत पर ही लगा हुआ था।  स्थानीय लोग भडक़े हुए थे। कारस्तानी प्रशासन की, नराजगी विधायक से, बात भी सही है।  लोगों ने पत्र के मुताबिक बर्फ को बीट करते हुए हेलीपेड भी बनाया था। मैगी और बिस्किट ने उनका पारा और अधिक चढ़ा दिया। मैं आज तक नहीं समझ पाया कि यह एयर रैकी था या जॉय राइड?  लेकिन याद रहेगा, प्रशासन के साथ यह जॉय राइड रैकी।  सिस्टम कैसे कार्य करता है यह भी दिख गया।

Monday, February 6, 2012

लोसर स्तोद में नववर्ष का त्यौहार

गत वर्ष लोसर पर गांव जाना चाहता था। भारी बर्फबारी के चलते केलंग से जा ही नहीं पाया। इस वर्ष बर्फ भी कम और मौसम भी अनुकूल रहा। केलंग गणतंत्र दिवस समारोह के बाद गांव चला गया। टैक्सी नियमित चलती है। बर्फ पड़ भी जाए तो ग्रेफ की मशीनरी बर्फ हटाने में जुट जाती है। ऐसे में मेरे गांव की ओर वाहन की दिक्कत नहीं है। लोसर से पूर्व घर में वार्षिक पूजा होती है। तिब्बती, लद्दाखी व खंपा भी नववर्ष का त्यौहार लोसर मनाते हैं लेकिन मनाने का समय अलग-अलग रहता है।

27 जनवरी को सुबह उठा। कुल देवता की पूजा अर्चना हुई। वार्षिक पूजा के लिए तैयारी आरंभ हो गई। जनजातीय क्षेत्र लाहुल के स्तोद में लोसर पर्व से पूर्व हर वर्ष यह प्रक्रिया होती है। गांव का ही एक व्यक्ति नियमित पूरे गांव के घरों में पूजा की विधि पूरा करता है। हमारे घर में कुल देवता के अतिरिक्त सात अन्य देवी-देवताओं को पूजा जाता है। घर के छत पर यह प्रक्रिया पूरी होती है। बौद्ध बहुल क्षेत्र में देवताओं से अधिक धर्म महत्वपूर्ण है, बाबजूद इसके साल में दो बार ऐसी पूजाएं हमारी जड़े कहीं और होने का संकेत देती हैं।


वार्षिक पूजा के लिए सत्तू के दो लिंगाकार टोटू बनते हैं, जिसे डंगे कहते हैं। डंगे के ऊपर मक्खन के मारकेनची बकरे रखे जाते हैं। डंगे व मारकेनची देवता तंगजर व यूलसा सोनापू को अर्पित करते हैं। आटे से दो त्रिकोण आकार के टोटू जिसे पिया कहते हैं फैला हला, फैला लारंग व गन ला को तथा काठू के आटे का पिया चची को अर्पित होता है। घेपन के लिए मक्खन का बकरा बनता है।  पवित्र देवदार के पत्तियों का  धूप व एक जग छंग छत्त पर ले जाते हैं। धर्म की प्रधानता ने अन्य पूजाओं को गौण कर दिया है।

पूजा में हर देव को पूजते हुए घर में सुख-समृद्धि, धन-धान्य, पालतू पशुओं की रक्षा व वृद्धि की कामना होती है। हर देव के लिए देवदार की टहनियों में सफेद कपड़ा लगा कर छत में क्रमबद्ध लगाया जाता है। पूजा के बाद धर्म के मुताबिक पवित्र झंडे लगाए जाते हैं। कुल देवता को भी सफेद कपड़ा अर्पित किया जाता है। इस पूरे क्रम को निपटा कर मैं वापस केलंग लौट आया। वार्षिक पूजा में पिछले वर्ष भी गया था।

2 फरवरी को मैं अपने परिवार के साथ लोसर के गांव के लिए चल पड़ा। मौसम अनुकूल था। घर में पूरी तैयारी में जुट गया। वर्षों बाद लोसर मनाने पहुंचा था। पहली बार तब जब मैं कक्षा चार में पढ़ता था। उसके बाद कभी गांव लोसर के दौरान नहीं पहुंच पाया था। कुछ धुंधली सी यादें थी। मेरी पत्नी पहली बार लोसर के आयोजन को देख रही थी।

3 फरवरी को सुबह चाचाजी ने आटे के 7 फोचे बनाए। फोचे तैयार होने के बाद हालड़ा फाडऩे की तैयारी थी। मेरे एक चाचा जी का पिछले वर्ष निधन हुआ था। ऐसे में हमारे घर में इस वर्ष गांव के लोग ही हालड़ा की तैयारी करते हैं। शोकग्रस्त परिवार को लोसर के दिन फूल देने की परंपरा होती है, ताकि वो अपना शोक तोड़ सके। लोसर नववर्ष की शुरूआत होती है। इस दिन के बाद शोक नहीं किया जाता।

हालड़ा फाडऩे से पूर्व बरराजा संभवत: बलिराजा को स्थापित करने के लिए बाकायदा शराब के साथ पूजा होती है। आटे के साथ दीवार पर आकृति बनती है। बीच में खतग व फूल लगता है। घी या मक्खन के टीके लगाए जाते हैं। उसी के साथ आटे के फोचे रखे जाते हैं। बरराजा स्थापित होने के बाद उस आसन पर कोई नहीं बैठता। माना जाता है कि बरराजा खुद वहां बैठते हैं। हर रोज कुछ भी ग्रहण करने से पूर्व बरराजा को अर्पित किया जाता है। फिर हालड़ा की लकड़ी फाडऩे से पूर्व पूजा होती है व फिर घर में जितने पुरूष सदस्य होते हैं उतने हालड़ा बनाए जाते हैं।

हालड़ा के साथ गलफा भी तैयार होता है। जो बरराजा के आसन के साथ रख दिया जाता है। शाम होते ही पूरे गांव के लोग पहुंचते हैं। पारंपरिक गीतों का गायन होता है। गांव के लोग शोकग्रस्त परिवार के सदस्यों को फूल देकर व छंग पिला कर शोक खत्म करने का आग्रह करते हैं। उसके बाद गलफा फैंकने की प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। गलफा का मशाल पूरे वर्ष में घर में अशुभ, अनहोनी या बुरे ग्रहों के प्रभाव को टालने की कोशिश होती है। गलफा का मशाल फैंकते ही गांव के दूसरे घर की और प्रस्थान करते हैं। गलफा का मशाल हर घर में फैंकते हैं। ग्रामीण एक घर से दूसरे घर होते हुए गांव के हर घर तक पहुंचते हैं।

हालांकि हालड़ा फैंकने का समय रात दस बजे था। लेकिन घर-घर में गलफा फैंकते हुए सुबह के तीन बज चुके थे। सवा तीन बजे के करीब हालड़ा फैंक सके। ऐसा हर वर्ष होता है लोग तय समय में हालडा नहीं फैंक पाते। हालड़ा फैंकते ही घर के तमाम दरवाजों व खिड़कियों में आटे के दिये जलाए जाते हैं। हालड़ा फैंकने वाले घर आते हुए बर्फ लेकर आते हैं जिसे पानी के बर्तन में डाल दिया जाता है। सुबह जल्दी जाकर नल में घी का टीका लगा कर महिलाएं पानी लाती हैं। पूरे दिन घर से बाहर नहीं निकलते। मौसम अनुकूल नहीं था इसलिए चार फरवरी के शाम को केलंग आ गया। लोसर के तीसरे दिन सुबह जल्दी घर के छते पर जाकर देवी-देवताओं को पूजा जाता है तथा उसके बाद पूरे दिन छत पर नहीं चढ़ा जाता। सात दिन तक लोसर मनाया जाता है। लोसर की शुभकामनाएं देते हुए मुझे खुशी है कि एक और आयोजन को मैं ब्लॉग के माध्यम से सहज सका हूं।